Chandrayaan-3: चंद्रयान 3 मिशन क्या है, कब लांच होगा, तारीख एवं समय, कैसे होगा, बजट, कौन जायेगा, लौन्चिंग, फायदे (Launch Date, Kab Launch Hoga, Launch Place, Budget, Date and Time, Launching, landing date, live, new, live location, Benefit)
General Knowledge Question & Answer on Chandrayaan- 3: भारत का तीसरा मून मिशन चंद्रयान-3 सफल हो गया है। बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 के लैंडर ने चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की। लैंडिंग के दो घंटे और 26 मिनट बाद लैंडर से रोवर भी बाहर आ गया है। भारत के चंद्रयान-3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरकर इतिहास रच दिया है। 40 दिनों के लंबे सफर के बाद 23 अगस्त 2023 को इसरो के चंद्रयान-3 मिशन ने चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की।
‘चंद्रयान 3’ की जानकारी (Chandrayaan 3 Detail)
नाम | चंद्रयान-3 |
लांच तारीख(Launch Date) | 14 जुलाई2023 |
लैंडिंग की तारीख (Landing Date) | 23 अगस्त, 2023 |
मिशन | प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर, रोवर |
ओपरेटर | इसरो |
एक प्रोपल्शन मॉड्यूल वजन | 2,148 किलोग्राम |
एक लैंडर का वजन | 1723.89 किलोग्राम |
एक रोवर का वजन | 26 किलोग्राम |
चंद्रयान-3 चर्चा में क्यों?
चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्रमा पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग कराने की तैयारी में है।
- भारत का लक्ष्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन की कतार में शामिल होकर यह उपलब्धि हासिल करने वाला विश्व का चौथा देश बनना है।
चंद्रयान-3 मिशन:
- परिचय:
- चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्र मिशन और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का दूसरा प्रयास है।
- इस मिशन के तहत चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई, 2023 को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से उड़ान भरी थी।
- इसमें एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (LM), प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM) और एक रोवर शामिल है जिसका उद्देश्य अंतर ग्रहीय मिशनों के लिये आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों को विकसित एवं प्रदर्शित करना है।
- चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य:
- चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सुगम लैंडिंग करना।
- रोवर को चंद्रमा पर घूमते हुए प्रदर्शित करना।
- यथास्थान वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना।
- विशेषताएँ:
- चंद्रयान-3 के लैंडर (विक्रम) और रोवर पेलोड (प्रज्ञान) चंद्रयान-2 मिशन के समान ही हैं।
- लैंडर पर वैज्ञानिक पेलोड का उद्देश्य चंद्रमा के पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना है। इन पेलोड में चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का अध्ययन, सतह के तापीय गुण, सतह के पास प्लाज़्मा में बदलाव और पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच की दूरी को सटीक रूप से मापना शामिल है।
- चंद्रयान-3 के प्रणोदन मॉड्यूल में एक नया प्रयोग किया गया है जिसे स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) कहा जाता है।
- SHAPE का लक्ष्य परावर्तित प्रकाश का विश्लेषण कर संभावित रहने योग्य छोटे ग्रहों की खोज करना है।
- चंद्रयान-3 में बदलाव और सुधार:
- इसके लैंडिंग क्षेत्र का विस्तार किया गया है जो एक बड़े निर्दिष्ट क्षेत्र के भीतर सुरक्षित रूप से उतरने की सुविधा देता है।
- लैंडर को अधिक ईंधन से लैस किया गया है ताकि आवश्यकतानुसार लैंडिंग स्थल अथवा वैकल्पिक स्थानों तक लंबी दूरी तय की जा सके।
- चंद्रयान-2 में केवल दो सौर पैनल की तुलना में चंद्रयान-3 लैंडर में चार तरफ सौर पैनल लगाए गए हैं।
- चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से प्राप्त उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों का उपयोग लैंडिंग स्थान निर्धारित करने के लिये किया जाता है और साथ ही स्थिरता तथा मज़बूती बढ़ाने के लिये इसमें कुछ संशोधन किया गया है।
- लैंडर की गति की निरंतर निगरानी करने और आवश्यक सुधार के लिये चंद्रयान-3 में अतिरिक्त नेविगेशनल एवं मार्गदर्शन उपकरण मौजूद हैं।
- इसमें लेज़र डॉपलर वेलोसीमीटर नामक एक उपकरण शामिल है जो लैंडर की गति का माप करने के लिये चंद्रमा की सतह पर लेज़र बीम उत्सर्जित/छोड़ेगा करेगा।
- प्रक्षेपण और समयरेखा:
- चंद्रयान-3 को लॉन्च करने के लिये LVM3 M4 लॉन्चर का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है
- LVM3 के उड़ान भरने के लगभग 16 मिनट बाद अंतरिक्ष यान रॉकेट से अलग हो गया। यह एक अंडाकार पार्किंग कक्षा (EPO) में प्रवेश कर गया।
- चंद्रयान-3 की यात्रा में लगभग 42 दिन लगने का अनुमान है, 23 अगस्त, 2023 को इसकी चंद्रमा पर लैंडिंग निर्धारित है।
- लैंडर और रोवर का मिशन लाइफ, एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन) का होगा क्योंकि वे सौर ऊर्जा पर कार्य करते हैं।
- चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के समीप है।
- चंद्रयान-3 को लॉन्च करने के लिये LVM3 M4 लॉन्चर का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है
दक्षिणी ध्रुव के समीप चंद्रमा की लैंडिंग का महत्त्व:
- ऐतिहासिक रूप से चंद्रमा के लिये अंतरिक्ष यान मिशनों ने मुख्य रूप से भूमध्यरेखीय क्षेत्र को उसके अनुकूल भूखंड और परिचालन स्थितियों के कारण लक्षित किया है।
- हालाँकि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव भूमध्यरेखीय क्षेत्र की तुलना में काफी अलग और अधिक चुनौतीपूर्ण भू-भाग है।
- कुछ ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य का प्रकाश दुर्लभ है जिसके परिणामस्वरूप उन क्षेत्रों में हमेशा अंधेरा रहता है जहाँ तापमान -230 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है।
- सूर्य के प्रकाश की कमी के साथ अत्यधिक ठंड उपकरणों के संचालन एवं स्थिरता के लिये कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है।
- चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अत्यधिक विपरीत स्थितियाँ प्रदान करता है जो मनुष्यों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है लेकिन यह उन्हें प्रारंभिक सौरमंडल के बारे में बहुमूल्य जानकारी का संभावित भंडार बनाता है।
- इस क्षेत्र का पता लगाना महत्त्वपूर्ण है जो भविष्य में गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण को प्रभावित कर सकता है।
भारत के अन्य चंद्रयान मिशन:
- चंद्रयान-1:
- भारत का चंद्र अन्वेषण मिशन 2008 में चंद्रयान-1 के साथ शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य चंद्रमा का त्रि-आयामी एटलस निर्मित करना और खनिज मानचित्रण करना था।
- प्रक्षेपण यान: PSLV-C11.
- चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी और हाइड्रॉक्सिल का पता लगाने सहित महत्त्वपूर्ण खोजें कीं।
- भारत का चंद्र अन्वेषण मिशन 2008 में चंद्रयान-1 के साथ शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य चंद्रमा का त्रि-आयामी एटलस निर्मित करना और खनिज मानचित्रण करना था।
- चंद्रयान-2: आंशिक सफलता और खोज:
- चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे, जिसका लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की खोज करना था।
- प्रक्षेपण यान: GSLV MkIII-M1
- यद्यपि लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गए, ऑर्बिटर ने सफलतापूर्वक डेटा एकत्र किया और सभी अक्षांशों पर पानी के प्रमाण पाए।
- चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे, जिसका लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की खोज करना था।
चंद्रमा मिशन के प्रकार:
- फ्लाईबीज़: इन मिशनों में चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किये बिना अंतरिक्ष यान का चंद्रमा के पास से गुज़रना शामिल है, जिससे दूर से अवलोकन की अनुमति मिलती है।
- उदाहरणतः संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पायनियर 3 और 4 तथा सोवियत रूस द्वारा लूना (Luna) 3 शामिल हैं।
- ऑर्बिटर: ये अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह और वायुमंडल का लंबे समय तक अध्ययन करने के लिये चंद्र कक्षा में प्रवेश करते हैं।
- चंद्रयान-1 और 46 अन्य मिशन में ऑर्बिटर का उपयोग किया गया है।
- प्रभाव मिशन: ऑर्बिटर मिशन का विस्तार, प्रभाव मिशन में उपकरण को चंद्रमा की सतह पर अनियंत्रित लैंडिंग करवाना, नष्ट होने से पहले मूल्यवान डेटा प्रदान करवाना शामिल था।
- चंद्रयान-1 के चंद्रमा प्रभाव जाँच (MIP) ने इस दृष्टिकोण का पालन किया।
- लैंडर्स: इन मिशनों का लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है, जिससे करीब से अवलोकन किया जा सके।
- सोवियत रूस द्वारा वर्ष 1966 में Luna 9 चंद्रमा पर पहली सफल लैंडिंग थी।
- रोवर्स: रोवर्स, विशेष पेलोड हैं जो लैंडर्स से अलग हो जाते हैं और चंद्रमा की सतह पर स्वतंत्र रूप से गति करते हैं।
- ये बहुमूल्य डेटा एकत्रित करते हैं और स्थिर लैंडर्स की सीमाओं को पार कर जाते हैं। चंद्रयान-2 के रोवर को प्रज्ञान नाम दिया गया था (चंद्रयान-3 के लिये भी यही नाम रखा गया है)।
- मानव मिशन: इन मिशनों में चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों की लैंडिंग शामिल है।
- वर्ष 1969 से 1972 के दौरान छह सफल लैंडिंग के साथ केवल NASA ने ही यह उपलब्धि हासिल की है।
- वर्ष 2025 के लिये नियोजित नासा का आर्टेमिस III, चंद्रमा पर मानव की वापसी को चिह्नित करेगा।
चंद्रयान 3 की बनावट कैसी है (Chandrayaan 3 Design)
- प्रोपल्शन मॉड्यूल :- Chandrayaan-3 को तीन हिस्सों में बनाया गया है, जिसमें पहला प्रोपल्शन मॉड्यूल है। बताना चाहते हैं कि अंतरिक्ष मिशन पर जो यान जाता है उसका जो पहला हिस्सा होता है उसे प्रोपल्शन मॉड्यूल कहा जाता है। यह किसी भी स्पेश को उड़ने के लिए जो ताकत होती है उसे प्रदान करने का काम करते हैं।
- लैंडर मॉड्यूल :- इसके दूसरे हिस्से को लैंडर मॉड्यूल कहा जाता है जोकि बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही वह हिस्सा होता है जो चंद्रमा पर उतरता है। आपको यह भी जानना चाहिए की रोवर को चंद्रमा की सतह पर सही प्रकार से पहुंचाने की जिम्मेदारी इसी के द्वारा निभाई जाती है।
- रोवर :- chandrayaan-3 का सबसे आखरी और तीसरा हिस्सा रोवर को कहा जाता है। यह लेंडर की सहायता लेता है और चंद्रमा की सतह पर उतरता है और फिर वहां से जानकारी प्राप्त करके धरती पर इसरो के साइंटिस्ट को इंफॉर्मेशन सेंड करता है।
- प्रोपल्शन मॉड्यूल :- Chandrayaan-3 को तीन हिस्सों में बनाया गया है, जिसमें पहला प्रोपल्शन मॉड्यूल है। बताना चाहते हैं कि अंतरिक्ष मिशन पर जो यान जाता है उसका जो पहला हिस्सा होता है उसे प्रोपल्शन मॉड्यूल कहा जाता है। यह किसी भी स्पेश को उड़ने के लिए जो ताकत होती है उसे प्रदान करने का काम करते हैं।
- लैंडर मॉड्यूल :- इसके दूसरे हिस्से को लैंडर मॉड्यूल कहा जाता है जोकि बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही वह हिस्सा होता है जो चंद्रमा पर उतरता है। आपको यह भी जानना चाहिए की रोवर को चंद्रमा की सतह पर सही प्रकार से पहुंचाने की जिम्मेदारी इसी के द्वारा निभाई जाती है।
- रोवर :- chandrayaan-3 का सबसे आखरी और तीसरा हिस्सा रोवर को कहा जाता है। यह लेंडर की सहायता लेता है और चंद्रमा की सतह पर उतरता है और फिर वहां से जानकारी प्राप्त करके धरती पर इसरो के साइंटिस्ट को इंफॉर्मेशन सेंड करता है।
चंद्रयान 3 की लैंडिंग (Chandrayaan 3 Landing in Moon)
प्राप्त जानकारियों के अनुसार chandrayaan-3 मिशन को साल 2023 में 14 जुलाई के दिन लांच किया जाएगा और लांच होने से लेकर के लेंडर और रोवर के चांद की सतह पर उतरने में तकरीबन 45 से लेकर के 50 दिन का समय लग जाएगा।
- पहला चरण :- पहले चरण को अर्थ टारगेट चरण कहा जाता है। इसका मतलब होता है पृथ्वी पर होने वाला काम। इसके अंतर्गत टोटल तीन स्टेज आते हैं जिसमें लॉन्च से पहले का स्टेज शामिल होता है और लॉन्च और रॉकेट को अंतरिक्ष तक ले जाने का स्टेज शामिल होता है। और तीसरा स्टेज होता है धरती की जो अलग-अलग कक्षाएं है उसमें chandrayaan-3 को आगे बढ़ाना। इस दरमियान बताना चाहेंगे कि तकरीबन chandrayaan-3 के द्वारा 6 चक्कर पूरी धरती के लगाए जाते हैं। इस प्रकार से वह दूसरे फेज की तरफ आगे बढ़ जाता है।
- दूसरा चरण :- दूसरे चरण में चंद्रयान को एक लंबे से सोलर ऑर्बिट से होते हुए चंद्रमा की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ाया जाता है अर्थात इस वाले चरण में चंद्रयान को चंद्रमा की तरफ भेजा जाता है।
- तीसरा चरण :- तीसरे चरण में chandrayaan-3 को चांद की कक्षा में भेजा जाता है। इसे लूनर ऑर्बिट इंसर्सन फेज भी कहते हैं।
- चौथा चरण :- आपकी जानकारी के लिए बताना चाहते हैं कि चौथे चरण में यह जो chandrayaan-3 है, यह चंद्रमा की सत्तह से तकरीबन 100 किलोमीटर ऊंचाई पर चक्कर लगाना स्टार्ट कर देता है।
- पांचवा चरण :- पांचवें चरण में चंद्रयान में मौजूद प्रोपल्शन मॉड्यूल और लूनर मॉड्यूल एक दूसरे से अलग हो जाते हैं।
- छठा चरण :- इस वाले चरण में चंद्रयान जिस तरफ जाता है उस तरफ की स्पीड को कम करना शुरू कर दिया जाता है।
- सातवां चरण :- सातवें चरण को प्री-लैंडिंग फेज कहा जाता है अर्थात लैंडिंग से पहले की जो अवस्था होती है, उसे सातवें चरण के द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसमें लैंडिंग की तैयारी स्टार्ट हो जाती है।
- आठवां चरण :- आठवें चरण में चंद्रयान की लैंडिंग कराई जाती है।
- नौवां चरण :- जब नवा चरण शुरू हो जाता है तो रोवर और लैंडर दोनों ही चंद्रमा की सतह पर पहुंच जाते हैं और सामान्य अवस्था में आ रहे होते हैं।
- दसवां चरण :- इसमें प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की 100 किलोमीटर की कक्षा में वापस पहुंचता है।
चंद्रयान-3 का ‘प्रज्ञान रोवर’ चांद पर क्या करेगा
23 अगस्त को शाम 6:04 मिनट पर चंद्रयान-3 चांद पर सफलता पूर्वक लैंड हो गया, जिसके चलते भारत पहला ऐसा देश बन गया है जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की है. और चौथा ऐसा देश बन गया है जिसने चांद पर लैंडिंग की है. अब जब भारत के चंद्रयान-3 ने चांद पर लैंडिंग कर ली हैं तो इसके ठीक 4 घंटे के बाद इसके अन्दर से प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर उतरा. और वहां पर वह 14 दिनों तक रिसर्च करेगा. आपको बता दें कि चांद का 1 दिन पृथ्वी के 28 दिन के बराबर है. अतः चांद पर 14 दिन दिन रहता है पर 14 दिन रात रहती है. इसलिए प्रज्ञान रोवर को दिन के समय में लैंड कराया गया है ताकि दिन के समय में यह 14 दिनों तक रिसर्च कर सके. क्योकि 14 दिन रात के समय में अँधेरे की वजह से रिसर्च करना मुश्किल होगी. आइये अब जानते हैं कि प्रज्ञान रोवर चांद पर क्या करेगा –
- पानी की खोज :- सबसे पहले प्रज्ञान रोवर चांद पर पानी की खोज करेगा. यदि वहां पानी होता है तो इससे भविष्य में चांद पर जीवन होना आसान हो जायेगा.
- खनिज की जानकारी :- इसके पहले जिस देश ने चांद पर कदम रखा था उनका मानना था कि वहां खनिज हो सकते हैं. उसकी जानकारी भी प्रज्ञान रोवर द्वारा जुटाई जाएगी.
- मिट्टी की जानकारी :- चांद की मिट्टी की जानकारी भी रोवर द्वारा कलेक्ट की जाएगी.
- भारत के तिरंगे की छाप छोड़ेगा :- प्रज्ञान रोवर के 6 पहिये हैं जिसमें तिरंगे के 3 रंग हैं. रोवर चांद पर जहाँ-जहाँ चलेगा वहां पर तिरंगे की छाप के साथ ही इसरो के लोगो की भी छाप छोड़ता जायेगा. आपको बता दें कि रोवर 1 सेकंड में 1 सेंटीमीटर तक चलेगा.
- अन्य चीजें :- रोवर पर लगा हुआ कैमरा चांद पर मजूद चीजों की स्कैनिंग करेगा, वहां के मौसम का पता लगाएगा, भूकंप एवं गर्मी की जानकारी भी देगा. इसके साथ ही इसमें पोलेड लगाये गये हैं जोकि इसकी सतह की जानकारी बेहतर तरीके के दे पाएंगे.
Chandrayaan-3 is the third Indian lunar exploration mission under the Indian Space Research Organisation’s (ISRO) Chandrayaan programme. It consists of a lander named Vikram and a rover named Pragyan, similar to those of the Chandrayaan-2 mission. The propulsion module carried the lander and rover configuration to lunar orbit in preparation for a powered descent by the lander.
Chandrayaan-3 was launched on 14 July 2023. The lander and rover landed at the lunar south pole region on 23 August 2023 at 18:02 IST, making India the first country to successfully land a spacecraft near the lunar south pole and the fourth country to soft-land on the Moon. At an estimated cost of roughly ₹650 ($75 million) crore, the Chandrayaan-3 mission comes into perspective when considering the ₹700 crore budget of the film Adipurush and the ₹1970 crore budget of the 2009 Hollywood movie Avatar.
On 22 July 2019, ISRO launched Chandrayaan-2 on board a Launch Vehicle Mark-3 (LVM3) launch vehicle consisting of an orbiter, a lander and a rover. The lander was scheduled to touch down on the lunar surface in September 2019 to deploy the Pragyan rover. The lander ultimately crashed when it deviated from its intended trajectory while attempting to land. Following Chandrayaan-2, Chandrayaan-3 and further lunar missions were proposed.
ISRO Chandrayaan 3 Team
- ISRO Chairperson: S. Somanath
- Mission Director: S. Mohanakumar
- Associate Mission Director: G. Narayanan
- Project Director: P. Veeramuthuvel
- Deputy Project Director: Kalpana. K
- Vehicle Director: Biju C. Thomas
Mission life
- Propulsion Module: Carries lander and rover to 100 by 100 kilometres (62 mi × 62 mi) orbit, with operation of experimental payload for up to 6 months.
- Lander Module: 1 Lunar Day (14 Earth Days)
- Rover Module: 1 Lunar Day (14 Earth Days)
ISRO Chandrayaan 3 Objectives
ISRO’s mission objectives for the Chandrayaan-3 mission were:
- Getting a lander to land safely and softly on the surface of the Moon.
- Observing and demonstrating the rover’s driving capabilities on the Moon.
- Conducting and observing experiments on the materials available on the lunar surface to better understand the composition of the Moon.
ISRO Chandrayaan 3 Components
Chandrayaan-3 comprised three main components:
Propulsion module: The propulsion module carries the lander and rover configuration to a 100 kilometres (62 mi) lunar orbit. It is a box-like structure with a large solar panel mounted on one side and a cylindrical mounting structure for the lander (the Intermodular Adapter Cone) on top.
Lander: The Vikram lander is responsible for the soft landing on the Moon. It is also box-shaped, with four landing legs and four landing thrusters capable of producing 800 newtons of thrust each. It carries the rover and various scientific instruments to perform on-site analysis.
Rover: The Pragyan rover is a six-wheeled vehicle with a mass of 26 kilograms (57 pounds). It is 917 millimetres (3.009 ft) x 750 millimetres (2.46 ft) x 397 millimetres (1.302 ft) in size. The rover is expected to take multiple measurements to support research into the composition of the lunar surface, the presence of water ice in the lunar soil, the history of lunar impacts, and the evolution of the Moon’s atmosphere.
Payloads
Lander
- Chandra’s Surface Thermophysical Experiment (ChaSTE) will measure the thermal conductivity and temperature of the lunar surface.
- Instrument for Lunar Seismic Activity (ILSA) will measure the seismicity around the landing site.
- Langmuir Probe (LP) will estimate the near-surface plasma density over time.
Rover
- Alpha Particle X-Ray Spectrometer (APXS) will derive the chemical composition and infer the mineralogical composition of the lunar surface.
- Laser-Induced Breakdown Spectroscope (LIBS) will determine the elemental composition (Mg, Al, Si, K, Ca, Ti, Fe) of lunar soil and rocks around the lunar landing site.
Propulsion module
- Spectro-polarimetry of Habitable Planet Earth (SHAPE) will study spectral and polarimetric measurements of Earth from the lunar orbit in the near-infrared (NIR) wavelength range (1–1.7 μm [3.9×10−5–6.7×10−5 in]).
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FAQ
Q : chandrayaan-3 मिशन का बजट कितना है?
Ans : 615 करोड़
Q : चंद्रयान 3 कहां से लांच होगा?
Ans : आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से
Q : chandrayaan-3 को कौन लांच कर रहा है?
Ans : इसरो
Q : chandrayaan-3 मिशन कब लांच होगा?
Ans : 14, जुलाई, 2023
Q: चंद्रयान-2 क्या है?
Ans: चंद्रयान-2 एक ऐसा यंत्र है जो चंद्र पर जाकर नई नई खोज करने वाला है जो पृथ्वी पर बैठे वैज्ञानिकों द्वारा संचालित किया जाएगा।
Q: चंद्रयान-2 किन लक्ष्यों को लेकर लॉन्च किया गया है?
Ans: चंद्रयान-2 के लॉन्च का मुख्य लक्ष्य चंद्रयान-1 द्वारा की गई अधूरी खोज को पूरा करना है। चंद्रयान-2 का उद्देश्य चंद्र पर समतल रूप में रोवर को चला कर चंद्र पर मौजूद प्राकृतिक कणों का पता लगाकर वहां जीवन की खोज को सत्यापित करना है।
Q: चंद्रयान-2 को कितने यंत्रों द्वारा चंद्र पर ले जाया जाता है?
Ans: ऑर्बिटर चंद्रमा की सतह के उचित आंकलन के लिए आठ वैज्ञानिक पेलोड ले जाता है और चंद्रमा के बाहरी वातावरण का अध्ययन करता है। लैंडर को सतह और उपसतह विज्ञान प्रयोगों के संचालन के लिए तीन वैज्ञानिक पेलोड द्वारा चाँद पर ले जाया जाता है। रोवर ने चंद्र की सतह के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने के लिए अपने अंदर दो पेलोड का समावेश किया हुआ है।
Q: ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर का मिशन जीवन कितने वर्षो का है?
Ans: चंद्रयान-2 को कई भागों में बांटा गया है जो एक अलग निर्धारित अवधि के अनुसार चंद्रमा पर जीवन की खोज करेगा। जैसे यदि बात करें लैंडर और रोवर की तो वह एक चंद्र दिन की अवधि तक चंद्र पर सर्वेक्षण करेगा। एक चंद्र दिन की अवधि से आशय पृथ्वी के 14 दिनों से है। ऑर्बिटर के खोज की समयावधि लगभग 1 वर्ष की होगी। चंद्रयान के ये सभी भाग चंद्र पर जीवन की खोज करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
Q: चंद्रयान-2 को कौन से वाहन के जरिए चंद्र तक लॉन्च किया गया है?
Ans: चंद्रयान-2 को जीएसएलवी एमके- III एम 1 लॉन्च वाहन द्वारा लॉन्च किया गया है।
Q: चंद्रयान-2 कब लांच किया गया?
Ans: चंद्रयान -2 ऑनबोर्ड GSLV MkIII-M1 की लॉन्चिंग सभी वैज्ञानिक जांच परीक्षणों के बाद 22 जुलाई, 2019 को श्रीहरिकोटा से 14.43 बजे शुरू की गई।
Q: विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर कब उतरेगा?
Ans: वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार विक्रम लेंडर की लैंडिंग चंद्रमा की सतह पर 6 सितंबर 2019 को तय की गई है।
Q: चंद्रमा की सतह पर यात्रा के लिए रोवर कितनी दूरी पर जा सकता है?
Ans: चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद रोवर लगभग आधा किलोमीटर की दूरी तक जा सकता है।
Q: चंद्रयान-2 मिशन की क्या चुनोती है?
Ans: चंद्रयान-2 मिशन की महत्वपूर्ण चुनोतियाँ
इसरो के अनुसार, चंद्रयान -2 चंद्रमा मिशन चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव का पता लगाना है।
चंद्रमा की सतह, उसके खनिज और तत्व की सामग्री, चंद्रमा और चंद्रमा की सतह पर पानी-बर्फ के होने का साबुत जुटाना।
Q: अंतरिक्ष यान लेंडर का नाम किसके नाम पर रखा गया है?
Ans: लैंडर को विक्रम के रूप में भी जाना जाता है। ISRO के संस्थापक और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पिता कहे जाने वाले विक्रम साराभाई के नाम पर ISRO ने लैंडर का नाम रखा है।
Q: विश्व भर में चांद की नर्म सतह पर जाने के लिए कितनी एजेंसियों द्वारा प्रयास किए गए हैं? उनमें से कितने प्रतिशत एजेंसियां चांद पर अपनी खोज को लेकर सफल हुई हैं?
Ans: विश्व भर में चांद की सतह पर पहुंचने के लिए लगभग 52 एजेंसियों ने अपने भरसक प्रयास किए हैं। चांद की सतह पर पहुंचने में लगभग 52% एजेंसियों ने ही सफलता प्राप्त की है।
Q: चंद्रमा का अध्ययन क्यों आवश्यक है?
Ans: विशेषज्ञों के अनुसार चंद्रमा का अध्ययन सौरमंडल के इतिहास को समझने और समय के परिवर्तन होते समय आने वाले बदलावों को समझने के लिए करना आवश्यक है। चंद्रमा के अध्ययन से हमें पृथ्वी से जुड़ी कई जानकारियां प्राप्त होती है साथ ही चंद्रमा पर मौजूद प्राकृतिक कणों की खोज करके उनका सर्वेक्षण करने में सहायता प्राप्त होती है।
Q: चंद्रमा पर क्या तापमान होता है?
Ans: चंद्रमा पर तापमान समय के हिसाब से बदलता रहता है। जैसे दिन के समय सूर्य के प्रकाश की वजह से चंद्रमा पर तापमान 130 ZingC होता है। वहीं जब रात का समय हो जाता है तो सूर्य अपनी दिशा बदल लेता है जिसकी वजह से चंद्रमा पर पहले से ठंडक हो जाती है उस समय चंद्रमा का तापमान 180C हो जाता है।
Q: क्या चांद पर कोई जीवन है?
Ans: विशेषज्ञों की मानें तो अभी तक चांद पर जीवन की खोज नहीं हो पाई है। परंतु बड़े बड़े वैज्ञानिक चांद पर जीवन की खोज में जुटे हुए हैं।
Q: हमें चंद्रमा का केवल एक ही पक्ष क्यों दिखाई देता है?
Ans: चंद्रमा एक ऐसा ग्रह है जो पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर 27.3 दिन, 12 घंटे और 44 मिनट में एक पूर्ण चक्कर लगाता है। वैज्ञानिकों की माने तो चंद्रमा को एक चक्कर पूरा करने में इतना समय इसलिए लगता है क्योंकि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल उसे अपनी ओर खींचता है जिसकी वजह से उसकी गति धीमी पड़ जाती है। इसलिए पृथ्वी के किसी भी हिस्से पर जाकर देखने से हमें चंद्रमा का एक ही पक्ष नजर आता है।
Q: पृथ्वी चंद्रमा से कितनी दूरी पर है?
Ans: यदि एक निश्चित आंकड़े के रूप में देखा जाए तो पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी 384000 किमी है। फिर भी यह बात अचंभित करने वाली है कि इतनी दूरी से भी चांद पृथ्वी तक अपनी ठंडक पहुंचाता है।
Q: चंद्रमा पृथ्वी से कितना भिन्न है?
Ans: चंद्रमा और पृथ्वी में सबसे बड़ा एक अंतर यही है कि पृथ्वी पर जीवन संभव है और चंद्रमा पर नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि पृथ्वी पर जीवन संभव करने के लिए सभी साधन मौजूद हैं जैसे जल, पानी और हवा और यदि चंद्रमा की तरफ देखा जाए तो चंद्रमा पर जीवन के लिए कोई भी आधारभूत संसाधन मौजूद नहीं है। यदि आकार की बात की जाए तो चंद्रमा का व्यास पृथ्वी के एक चौथाई व्यास के बराबर है मतलब 3,476 किमी। चंद्रमा का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का मात्र 1/81 हिस्सा है। पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के बारे में तो आप जानते ही होंगे परंतु चांद का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के हिसाब से मात्र 1/6 है।
Q: चंद्रमा पर पानी की जरूरत क्यों है?
Ans: जैसा की आप सभी देख पा रहे हैं कि आजकल पृथ्वी पर बढ़ते प्रदूषण की वजह से दिन प्रतिदिन लोगों का जीना मुहाल होता जा रहा है। इसके चलते अब यही अनुमान लगाए जा रहे हैं कि चंद्रमा और मंगल ग्रह पर जीवन की खोज यदि हो जाती है तो धीरे-धीरे लोग वही जाकर बसना शुरू कर देंगे। अब जब चंद्रमा पर पानी और हवा की खोज पूरी हो ही जाएगी तो यह आम बात हो जाएगी कि लोग अपने ज्ञान लेकर चंद्रमा और मंगल ग्रह की यात्रा पर निकलेंगे। उसके बाद वहां थोड़ा आराम करने के बाद ही आगे बढ़ेंगे तो ऐसे में चंद्रमा की स्थिति पेट्रोल पंप की तरह हो जाएगी। क्योंकि जब पानी और हवा पहले से ही चंद्रमा पर मौजूद होगी तो अपने साथ कम पानी और हवा लेकर आएँगे और चंद्रमा पर मौजूद वस्तुओं का फायदा उठाने के बाद वहां से निकल जाएंगे जैसा कि आप पेट्रोल पंप के साथ करते हैं। बहरहाल यह सब मात्र अंदाजे की तरह बताए जा रहे हैं भविष्य में ऐसा होगा या नहीं यह जानने के लिए आपको आने वाले भविष्य का ही इंतजार करना होगा।